देर से मिले हो, तुम दूर तक चलना ,
हवाओं की तरह मेरी रूह में पिघलना..
मे धूप-धूप चलूँगी , तुम छाँव छाँव चलना
कुछ भी हो मगर, हाथों से ये डोर ना फिसलना ....
तेरी हो जाऊँ इस कदर ,
जैसे बारिश की दो बुँदे सिमटी हों वैसे..
जैसे चराग की बाती का उसकी आगोश में जलना ..
बड़ा सुकून पाया है तुममें …तुझमे दिख रहा है मुझे घर मेरा..
मेरी शाम को तो बस तेरी बाहों में है ढलना ...
जाने कहाँ बिछड़ गए थे तुम, अरसों बाद पाया है तुम्हें
धुँधला-सा छोड़ आई हूँ वक्त मेरा पीछे..
सपनों के साथ अब तुम मेरी आँखों में ही पलना …..
मे चाहूँ तेरी रूह मे हवाओं-सा पिघलना...
देर से मिले हो, तुम दूर तक चलना……...
-Anita R.