कोई भी काम पूरी ईमानदारी से करने का फल अच्छा ही मिलता है- ऐसा सब कहते है..
मैने तो तुम्हें पूरे दिल से चाहा – किस से कहूँ क्या मिला !
तुम्हारा स्नेह सँजोकर एक छोटी तलवार-सी बनाई थी,
कि कोई बीच मे आने की गुस्ताखी ना कर सके ,
तुमने वो ही तलवार मुझसे छीनकर मेरे आर-पार कर दी
मेरी मानो,- जो घाव दिख रहा है, वह तलवार से नहीं हुआ है |
तुमने हालात ही ऐसे बना दिए है कि
मे अगर जीतूँगी तब भी तुमको हारूँगी , और हारूँगी तब भी..
तुम मेरे न हुए ये समझ आता है, पर मे खुद मेरी क्यूँ नहीं हूँ?
गुनाह तुमने किया है,दोष तुम्हारा है-,लड़ाई तो तुमसे है, जाने क्यों फिर खुद से लड़ती रहती हूँ ..
छोड़ने की बात, रिश्ता तोड़ने की बात जब तुमने की ,
मुजे पता लगा कि तुम तो कब के यह सब मन-ही मन छोड़ चुके हो..
प्यार होना-नहीं होना तुमने सब खेल-सा समज लिया है..
कभी हुआ तो कभी नहीं..
मैने पहले ही कहा था- खेलों मे मेरी रुचि कभी रही नहीं..
जानती हूँ प्रेम धैर्य की परीक्षा लेता है,
पर मैने तो सभी मे अव्वल दरज्जा हासिल कर रखा है ,
फिर तुम्हारी नासमझी की परीक्षा हर बार मुझे ही क्यों देनी पड रही है
तुम्हें गले लगाकर गुनाह कर लिया- क्या यह जताना चाहते हो?!
अभी तुम्हें , मे नहीं चाहिए- तुम्हारे पास मन मे इसके ढेर सारे कारण होंगे ..- ठीक सही..
पर थोड़े दिन बाद सहसा पहले कि तरह तुम्हें ज्ञात होगा कि जीवन किसके साथ बिताना है –
तब भी तुम्हारे पास कारण मौजूद ही होंगे कि क्यों मुझे ही चुना जाना चाहिए ..
पर तब अगर मैं पहले की तरह
तुम्हारी एक आवाझ सुनकर ,साथ न चल दूँ तो समझ लेना-
तुम्हारा अविश्वास का रोग तुम्हारे साथ रहकर मुझे भी लग गया है – अब इसका कोई विकल्प नहीं
क्योंकि अब अगर साथ रहने को हालात भी संभल जाए,
डरती हूँ,
एक बार फिर मुझे तुमसे प्यार हो जाएगा,
और एक अरसे के बाद, जब मेरा प्यार ऊंचाइयों को छु रहा होगा,
एक बार फिर तुम ये कह दोगे – "मुझे प्यार नहीं "..
-Anita R.