* प्रस्तावना
* बेटियाँ - घर की चिरैया -प्रतीक
* शैशव और पीहर
* कुछ दृष्टांत
* उपसंहार
' बेटी ' - यह शब्द ही इतना मीठा, दुलार भरा है कि बोलते ही मन ममता से भर जाता हैं, और खडी होती है एक तसवीर - मुसकाती हुई परी, नन्हे नन्हे हाथो में गुलाबी चूड़ियाँ पहनकर, छोटे छोटे पैरो में पायल पहनकर घरके आँगनमें चहकने वाली प्यारी चिडीया | कितनी प्यारी होती हैं ये बेटियाँ |
बेटी सही अर्थ में आँगन की चिरैया - यानी कि चिड़िया होती है | अपने हिस्से के दाने लेकर- अपने हिस्से का दुलार लुटाकर चली जाती हैं- उड़ जाती हैं | और छोड़ जाती हैं पीहर में अपनी यादेँ | बेटियों का दामन सभी के लिए प्रेम से भरा होता हैं | कोई भी रिश्ता हो, बिना बेटियों के वो अधुरा -सा लगता हैं | मानों या ना मानों , पर जिस घर में बेटी ना हो, उस घर का आतिथ्य भी कुछ फ़ीका-सा लगता हैं |
'बेटी' शब्द के साथ एक शब्द जुडा है- पीहर | जहाँ वे अपने अस्तित्व का समग्र प्यार लुटा जाती है | पापा की लाड़ली होती है- माँ की दुलारी होती हैं और भाई की मुसकान होती है बेटियाँ | तभी तो इतना स्नेह अपने दामन में संजो पाती है | अगर काम के वक्त बेटा सो रहा हो, तो उसे उठाकर बाप काम पर भेज देगा ; पर अगर उसकी जगह बेटी सो रही हो, तो पिता दो बार सोचेंगे कि उसे जगाएँ या नहीं- पता नही ये सुकून की नींद उसे ससुराल में मिले ना मिले | एक बहुत मशहूर पंक्ति है कि - आपका बेटा तब तक आपका है. जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती | पर बेटियाँ तो सदैव बेटियाँ ही रहती है | ससुराल जाने पर भी वें माइके की शुभकामनाएँ ही करती रहती हैं |
इस पर से एक कथा याद आती हैं - नया शादीशुदा एक जोड़ा था | पति- पत्नी ने मिलकर फैसला लिया कि कोई भी आये, वो दरवाज़ा नहीं खोलेंगे | सबसे पहले पति के माँ- बाप आए और दरवाज़ा खटखटाने लगे | पर जब कि पहले तय हो चुका था, पति- पत्नी ने दरवाज़ा नहीं खोला | थोड़ी देर बाद पत्नी के माँ- बाप आए और दरवाज़ा खटखटाया| पत्नी ने आंसू भरे नैनो से पति के सामने देखा और बोली -" यह में अपने माँ - बाप के साथ नहीं कर सकती |" और उसने दरवाज़ा खोल दिया | पति ने कुछ कहा नही| बरसो बीत गए और उनके यहाँ पुत्र का जन्म हुआ | दावत दी गई| पर थोड़े वर्षो बाद जब उनको एक पुत्री हुई, तो पति काफी खुश हुआ | पत्नी ने उसका कारण पूछा , तब वो बोला, "यह वो है, जो मेरे लिए दरवाज़ा खोलेगी | " सच में, जितना त्याग और समर्पण बेटी कर सकती है, शायद ही ऐसा कोई रिश्ता होगा |
इतिहास में भी बेटियों ने कुछ -न -कुछ कारणों के लिए समर्पण किये हुए है - चाहे वो अपने राज्य को बचाने के लिए एक मुग़ल से विवाह करती राजपूत की हरकाबाई हो | या फिर अपनी अंतिम साँस तक लडती झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हो | बेटियाँ सदैव ही अपने पीहर के आँगन को सँवारती है | अगर घर तुल्सीक्यारा है, तो उस पर रखा दीया - बेटी है |
एक लेखक ने बहोत ही कम शब्दों में बेटियों को समजाया है-
"बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती है पीहर"
..बेटियाँ..
..पीहर आती है..
..अपनी जड़ों को सींचने के लिए..
..तलाशने आती हैं भाई की खुशियाँ..
..वे ढूँढने आती हैं अपना सलोना बचपन..
..वे रखने आतीं हैं..
..आँगन में स्नेह का दीपक..
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..
..बेटियाँ..
..ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर..
..कि नज़र से बचा रहे घर..
..वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरनी में..
..देने आती हैं अपने भीतर से थोड़ा-थोड़ा सबको..
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..
..बेटियाँ..
..जब भी लौटती हैं ससुराल..
..बहुत सारा वहीं छोड़ जाती हैं..
..तैरती रह जाती हैं..
..घर भर की नम आँखों में..
..उनकी प्यारी मुस्कान..
..जब भी आती हैं वे, लुटाने ही आती हैं अपना वैभव..
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..🙏
बेटियाँ- सच में होती है घर की चिरैया |
Too good essay, Anita. Really nice research, concept & wordings. Congratulations, again. You deserve the Prize.
ReplyDeleteKeep it up. Take Care & Keep Smiling Always.
May God Bless You...
Thank you so much sir :)
DeleteVery Nice Words with right Concept and good research. Congratulations, again. Keep it up...
ReplyDeleteGod Bless You, Take Care & Keep Smiling Always...